
रायपुर। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को संध्या 5 बजे एम्स में निधन वे 89 साल के थे। उनका अंतिम संस्कार 24 दिसंबर को राजधानी रायपुर में किया जाएगा वे अपने पीछे दो पुत्र और एक पुत्री सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। विनोद कुमार शुक्ल के निधन पर राज्यपाल रमेन डेका, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने शोक व्यक्त करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि दी है।

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित छत्तीसगढ़ के प्रख्यात हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को सांस लेने में कठिनाई के कारण दो दिसंबर को एम्स में भर्ती किया गया था। उन्हें वेंटिलेटर में ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था, जहां मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।
1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल पिछले 55 वर्षों से साहित्य सृजन में सक्रिय रहे। श्री शुक्ल ने अध्यापन को रोजगार के रूप में चुनकर अपना पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया। वे हिंदी भाषा के एक साहित्यकार रहे, जिन्हें हिंदी साहित्य में उनके अनूठे और सादगी भरे लेखन के लिए जाना जाता है। हिंदी साहित्य में अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 में 59 वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया।

उनकी पहली कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुई थी। उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ शामिल हैं।
हिंदी भाषा के एक साहित्यकार, जिन्हें हिंदी साहित्य में उनके अनूठे और सादगी भरे लेखन के लिए जाना जाता है। शुक्ल ने उपन्यास एवं कविता विधाओं में साहित्य सृजन किया है। उनका पहला कविता संग्रह 1971 में लगभग जय हिन्द नाम से प्रकाशित हुआ। 1979 में नौकर की कमीज़ नाम से उनका उपन्यास आया जिस पर फ़िल्मकार मणिकौल ने इसी से नाम से फिल्म भी बनाई। शुक्ल के दूसरे उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
